Rahat indori poetry in hindi

rahat indori poetry

उसे अब के वफ़ाओं से गुज़र जाने की जल्दी थी
मगर इस बार मुझ को अपने घर जाने की जल्दी थी

इरादा था कि मैं कुछ देर तूफ़ाँ का मज़ा लेता मगर बेचारे दरिया को उतर जाने की जल्दी थी



मैं अपनी मुट्ठियों में क़ैद कर लेता ज़मीनों को
मगर मेरे क़बीले को बिखर जाने की जल्दी थी
यहाँ हर एक मौसम को गुज़र जाने की जल्दी थी
मैं आख़िर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता
बड़े ज़िंदा-नज़र थे जिन को मर जाने की जल्दी थी
वो शाख़ों से जुदा होते हुए पत्तों पे हँसते थे
मैं साबित किस तरह करता कि हर आईना झूटा है
कई कम-ज़र्फ़ चेहरों को उतर जाने की जल्दी थी



आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो