Rahat indori poetry in hindi
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rahat indori poetry |
उसे अब के वफ़ाओं से गुज़र जाने की जल्दी थी
मगर इस बार मुझ को अपने घर जाने की जल्दी थी
मैं अपनी मुट्ठियों में क़ैद कर लेता ज़मीनों को
मगर मेरे क़बीले को बिखर जाने की जल्दी थी
यहाँ हर एक मौसम को गुज़र जाने की जल्दी थी
मैं आख़िर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता
बड़े ज़िंदा-नज़र थे जिन को मर जाने की जल्दी थी
वो शाख़ों से जुदा होते हुए पत्तों पे हँसते थे
मैं साबित किस तरह करता कि हर आईना झूटा है
कई कम-ज़र्फ़ चेहरों को उतर जाने की जल्दी थी
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
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